Systematic Investment Strategy - गिरते बाजार में SIP जारी रखने से कैसे मिलते हैं बेहतर रिटर्न? जानिए अनुशासित निवेश की ताकत और लंबी अवधि में फायदे का गणित
बाजार में गिरावट? SIP बंद करना नहीं, चालू रखना है समझदारी!
जब शेयर बाजार में हलचल होती है और हर तरफ लाल निशान दिखते हैं, तो अनुभवी निवेशकों का भी मन डगमगाने लगता है। ऐसे समय में
कई लोग अपनी SIP (Systematic
Investment Plan) को रोकने का विचार करते हैं ताकि अपनी पूंजी को बचाया जा
सके।
लेकिन रुकिए! ऐसा कदम उठाना आपको लंबे समय में नुकसान पहुंचा सकता है और बाद
में पछतावे की वजह बन सकता है।
SIP बंद करना क्यों
हो सकता है भारी भूल?
शेयर बाजार का स्वभाव ही उतार-चढ़ाव वाला है—कभी ऊपर, कभी नीचे। लेकिन अगर आप इतिहास पर नज़र डालें, तो पाएंगे कि लंबी अवधि में बाजार ने हमेशा सकारात्मक
रिटर्न दिए हैं।
SIP का मूल सिद्धांत यही है:
नियमित और अनुशासित निवेश, चाहे बाजार ऊपर
हो या नीचे।
जब आप गिरते बाजार में SIP बंद कर देते
हैं, तो आप एक बेहद अहम फायदे से
वंचित रह जाते हैं—जिसे कहते हैं Rupee Cost Averaging।
अगर चाहें तो मैं इस हिस्से को carousel
slide titles, infographic bullets या voice-over
script में भी ढाल सकता हूँ। अगले हिस्से “Rupee Cost Averaging का खेल” को भी इसी टोन में reframe करूं?
क्या है ये 'रुपये की लागत औसत' का खेल?
'रुपये की लागत औसत' एक ऐसी रणनीति है जो SIP को खास बनाती है, खासकर जब बाजार
में गिरावट हो. आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं:
मान लीजिए आप हर महीने ₹5,000 की SIP एक इक्विटी म्यूचुअल फंड में करते हैं।
- पहला
महीना (बाजार स्थिर है): फंड की NAV
₹50 है।
₹5,000 में आपको मिलती हैं = 5000 ÷ 50 = 100 यूनिट्स - दूसरा
महीना (थोड़ी गिरावट): NAV घटकर ₹40 हो जाती है।
₹5,000 में मिलती हैं = 5000 ÷ 40 = 125 यूनिट्स - तीसरा
महीना (तेज़ गिरावट): NAV गिरकर ₹25 हो जाती है।
₹5,000 में मिलती हैं = 5000 ÷ 25 = 200 यूनिट्स
अब गौर कीजिए—जैसे-जैसे बाजार गिरा, आपकी SIP से मिलने वाली यूनिट्स की
संख्या बढ़ती गई।
अगर आपने डरकर दूसरे या तीसरे महीने में SIP बंद कर दी होती, तो आप कम कीमत
पर ज्यादा यूनिट्स खरीदने का मौका खो देते।
यही है Rupee Cost Averaging का असली फायदा—गिरते बाजार में निवेश जारी रखने से आपकी औसत
खरीद लागत घटती है और भविष्य में रिटर्न बेहतर मिलते हैं।
कुल निवेश और यूनिट्स (3 महीनों में)
- कुल निवेश
= ₹5000 + ₹5000 + ₹5000 = ₹15,000
- कुल
यूनिट्स = 100 + 125 + 200 = 425 यूनिट्स
- आपकी
प्रति यूनिट औसत खरीद लागत = ₹15,000 / 425 यूनिट्स =
लगभग ₹35.29 प्रति यूनिट.
- जबकि आपने
यूनिट्स ₹50, ₹40, और ₹25 के भाव पर खरीदी थीं.
जब बाजार सुधरता है, SIP का असली जादू दिखता है
मान लीजिए कुछ समय बाद बाजार फिर से मजबूत होता है और NAV वापस ₹50
तक पहुंच जाती
है।
अब आपके पास 425
यूनिट्स हैं,
जिनकी कुल
वैल्यू होगी:
425 × ₹50 = ₹21,250
जबकि आपने कुल
निवेश किया था ₹15,000।
➡ लाभ = ₹6,250
अब सोचिए, अगर आपने सिर्फ पहले महीने SIP की होती और फिर डरकर बंद कर
दी होती, तो आपके पास सिर्फ 100 यूनिट्स होतीं।
NAV ₹50 होने पर आपका निवेश ₹5,000 ही रहता—ना कोई फायदा, ना कोई ग्रोथ।
लेकिन लगातार SIP जारी रखने से आपने गिरते बाजार में ज्यादा यूनिट्स खरीदीं
और जब बाजार सुधरा, तो आपको शानदार रिटर्न मिला।
यही है SIP
का असली गेम—लंबी
अवधि + अनुशासन + कंपाउंडिंग का कमाल।
SIP: धैर्य और अनुशासन का खेल
SIP कोई जादू की छड़ी नहीं है जो रातों-रात अमीर बना दे।
यह एक लंबी
यात्रा है, जिसमें बाजार के उतार-चढ़ाव से घबराना नहीं, बल्कि टिके रहना जरूरी है।
बाजार गिरे तो क्या करें? How SIP Works in Volatile
Market
- शांत
रहें: घबराहट में कोई फैसला न लें
- SIP
चालू रखें: यही समय
है सस्ते यूनिट्स खरीदने का
- टॉप-अप
करें: अगर अतिरिक्त फंड है, तो SIP
राशि बढ़ाएं
- सलाह लें: ज़रूरत हो तो वित्तीय सलाहकार से बात करें
याद रखें: - सफल निवेशक वही होते हैं जो बाजार के शोर से नहीं, अपने लक्ष्य से प्रभावित
होते हैं।
गिरता बाजार
डरावना लग सकता है, लेकिन SIP निवेशकों के लिए यह एक सुनहरा मौका भी है।
इसलिए, डरें नहीं—डटें! SIP चालू रखें और
अपने फाइनेंशियल गोल्स की ओर बढ़ते रहें।
Disclaimer: -यह सामग्री केवल शैक्षिक और जानकारी के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। इसमें दी गई कोई भी जानकारी निवेश सलाह नहीं मानी जानी चाहिए। बाजार जोखिमों के अधीन होता है, और निवेश से पहले अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य करें। पिछले प्रदर्शन से भविष्य की गारंटी नहीं मिलती। SIP या किसी भी निवेश योजना में निवेश करते समय अपने वित्तीय लक्ष्यों, जोखिम क्षमता और समयावधि को ध्यान में रखें।